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..!! मनीष !!.. ©️

@a_lfaaz

आख़िरी मुलाक़ात,आख़िरी खत,आख़िरी संदेश,
कभी होना ही नही चाहिए क्यूंकि ये आख़िरी याद,ताउम्र के लिये,सबसे जहरीली याद बनकर रह जाती है. .❣️.
.! 🇮🇳 !. .!! ॐ !!.

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इक शाम हाथों में जाम तेरा ख्याल और नींद हराम मद्धम संगीत पलकों पर तुम आंखों में अश्क होंठों पर मुस्कान इश्क का है ये बेहतरीन इनाम ! ~मनीष

इक शाम
हाथों में जाम 

तेरा ख्याल
और नींद हराम 

मद्धम संगीत
पलकों पर तुम

आंखों में अश्क
होंठों पर मुस्कान

इश्क का है ये
बेहतरीन इनाम !

~मनीष
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आंखों से बह रही हो तुम आहिस्ता आहिस्ता ; हो रही हैं अहसासें अब धूमिल राफ्ता राफ्ता ! ~मनीष !

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तुम्हारे और मेरे जिस्मों के दरम्यान जो खाई है, उस खाई के बीच इक रूह की पुल की जरूरत अब है ! ~मनीष

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अश्मी ™G कर दे तबाह तू मुझे अपने हुस्नों जाल से ; तेरे दर पे आए हैं कर तबाह हमे धमाल से ! #बज़्म

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अश्मी ™G यूं मासूमियत से तुम कत्ल करती हो मेरा की तुम्हे निहारते निहारते मेरी जां जाती है। #बज़्म

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अश्मी ™G ना वक्त बदला न तुझे पाने की ख्वाहिश बदली ; बस इश्क में मर मिटने की चाह बदल गई मेरी । #बज़्म

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अश्मी ™G लिखूंगा मैं भी कभी प्रेम पर निबंध , समेटकर सारे एहसास और दर्द को । #बज़्म

मधुलिका…“सुकून” (@_sukoon) 's Twitter Profile Photo

ख़ुद से ही भाग रही हूँ क्या ढूँढ रही हूँ मालूम नहीं क्या पाना है जानती नहीं भटक रही हूँ एक न ख़त्म होने वाले सफ़र में चल रही हूँ इन काँटों से भरे रास्तों पे न कोई ख़ुशी है न कोई ग़म एहसास विहीन बस चलती जा रही हूँ क्या कभी हासिल होगा इस जीवन का अंतिम मुक़ाम…? #Kavita250

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थी वो इक अलसाई शाम अमलतास के पेड़ की झुरमुट से खिड़की से झांक रहा आधा चाँद कमरे में बिखरी पडी तेरी स्मृतियां, और पलकों पर छाया चांद सा अक्स तेरा मुझ पर कहर ढाये जा रहे थे, उसपर ये तन्हाई दूजा तेरा पास न होना ये अलग ही मुझपर सितम ढा रही थी! खैर .. "हुस्न ठहरा मगरुर" ~मनीष #बज़्म

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अल्फ़ाज़ नए थे और जुबान वासी दे बैठे हैं हम मक्खियों को गाली बाजार में तुम भी थे बाजार में हम भी थे फर्क इतना था तुम भीड़ में थी हम थे अकेले तुमने बेकद्री की तो क्या ही गलत किया मेरे तहज़ीब की धज्जियां उड़ा रहे मेरे घरवाले कसूर बस इतना था हम लाना भूल गए थे पुदीने! ~मनीष #बज़्म

!!..ज्योति ..!! (@jyotisharma___) 's Twitter Profile Photo

कभी कभी अपनो का सम्मान पर चोट देना मानो क़त्ल करने बराबर है✍ #कभी_कभी ❤ A v ! ..!™ 😉

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मुंतजिर रहूंगा मैं, तेरा हर वक्त .. क्यूंकि मुझे तुमसे इश्क है! पर सुनो .. तुम कभी मत आना , पास मेरे .. गर आओगी तो आओगी तुम वक्त गुजारने को .. और मैं .. इसे फिर , इश्क समझ बैठूंगा । ~मनीष

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हूं मैं आज "बनारस" वाणी में रस कहानी में रस चाय में रस लस्सी में रस मुस्कुराहट में रस शाम की आरती के शंखनाद में भी रस फितरत में रस नियत में रस लहरों में रस नाव में भी रस अस्सी से लेकर मणिकर्णिका तक जिंदगी के हर पहलू को जीता यह बनारस "महादेव" की नगरी में है रस ही रस! ~मनीष #बज़्म