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Hindinama

@hindinama2

हिन्दीनामा, एक छोटा सा परिवार है। जिसका प्रयास हिन्दी समेत अन्य भाषाओं के हिन्दी अनूदित साहित्य के भिन्न-भिन्न रूपों को आपके समक्ष रखना है।

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रात आई है बलाओं से रिहाई देगी अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी अनवर मसूद

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ठंडे कमरों में बैठकर पसीने पर लिखना कविता ठीक वैसा ही है जैसे राजधानी में उगाना फ़सल कोरे काग़ज़ों पर। फ़सल हो या कविता पसीने की पहचान है दोनों ही। बिना पसीने की फ़सल या कविता बेमानी है आदमी के विरूद्ध आदमी का षडयंत्र- अंधे गहरे समंदर सरीखा जिसकी तलहटी में असंख्‍य हाथ नाख़ूनों

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अपने सपनों को अंतरिक्ष में पतंग की तरह फेंक दो, और तुम नहीं जानते कि वह वापस क्या लाएगा— नया जीवन, नया दोस्त, नया प्यार, या कोई नया देश। अनाइस नीन

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गाँव वह स्थान जहाँ बूढ़े, बच्चे और स्त्रियाँ ही शेष हों जिसके युवजन किसी त्योहार में अतिथि की तरह आते हैं या किसी महामारी के बाद... कुमार मंगलम

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सुझाव त्योहार आने के पहले ही जिन्हें घेर लेती है त्योहार के बीत जाने के ठीक बाद की निर्जनता वे गढ़ते हैं अपना मिथक अपने चिन्ह अपना भगवान मनाते हैं अपना त्योहार ऐसे लोगों से बचना, दुनिया तुम ठहरी माटी, वे ढीठ कुम्हार! आसित आदित्य

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मैं न कहता था मेरे घर में भी आएगी बहार शर्त इतनी थी कि पहले तुझे आना होगा। कैफ़ी आज़मी

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जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने दादी की हँसुली ने, माँ की पायल ने उस सच्चे घर की कच्ची दीवारों पर मेरी टाई टँगने से कतराती है जिन्हें दिया संगीत द्वार की साँकल ने खाँसी के ठनके, चूड़ी की हलचल ने उन संकेतों वाले भावुक घूँघट पर दरवाज़े की 'कॉल बैल' हँस जाती है कुँअर बेचैन

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शहर का अंगार जलता है, जलाता है फिर राख हो जाता है। गाँव के अंगार एक चूल्हे से जाते हैं दूसरे चूल्हे तक और सभी चूल्हे सुलग उठते हैं। जसिंता केरकेट्टा

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एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है, बेजुबान छत दीवारों को घर कर देता है । ख़ाली शब्दों में आता है ऐसे अर्थ पिरोना गीत बन गया-सा लगता है घर का कोना-कोना एक तुम्हारा होना सपनों को स्वर देता है । माहेश्वर तिवारी

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पूरे घर में ईटें-पत्थर धीरे-धीरे छानी-छप्पर छोड़ रहा है गाँव ढीले होते कसते-कसते पक्के घर में कच्चे रिश्ते जोड़ रहा है गाँव इससे उसको उसको इससे और न जाने किसको किससे तोड़ रहा है गाँव गरमी हो बरखा या जाड़ा सबके आँगन एक अखाड़ा गोड़ रहा है गाँव शिव बहादुर

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हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं और घर उनसे मुक्ति सच्चाई यूँ भी हो सकती है कि यात्रा एक अवसर हो और घर एक संभावना कुँवर नारायण

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आज, इस ढलती शाम को आगजनी में जलकर काले काजल बन गए मेरे शहर के मकानों को देखकर लगता है किसकी छट्ठी के लिए बनाया गया होगा इतना सारा काजल? उषा उपाध्याय

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जिससे एक मर्तबा प्रेम हो जाए, फिर जीवन भर नहीं छूटता। अतीत की स्मृतियों से वह कभी रिक्त नहीं होता, प्रेम की मृत्यु हमारी आंशिक मृत्यु है, हर बार प्रेम के मरने पर हमारा एक हिस्सा भी हमेशा के लिए मर जाता है। अमृता प्रीतम

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ज्ञान हमेशा किसी को सौंपकर जाना चाहिए। अमृता प्रीतम

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प्यार की जोत से घर घर है चराग़ाँ वर्ना एक भी शम्अ न रौशन हो हवा के डर से शकेब जलाली #Diwali

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जाने से पहले मुझे पूरे करने हैं कई अधूरे काम मसलन करना है एक नदी से संवाद जो बहती है मेरे अगल-बगल लिखना है एक लंबा ख़त पहाड़ों पर उतरती सुरमई शाम के नाम पूछना है प्रवासी पंछियों से कि वे कैसे रखते हैं अपने परों में हज़ारों मील उड़ान का हौसला पहाड़ों पर जाती पगडंडियों में खोजने

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2019 में दिवाली के दिन ली गई यह तस्वीर आज भी हमारी सबसे प्रिय तस्वीर है जिसे दिवाली पर हम हर साल साझा करते हैं। तस्वीर में जो छोटे से अद्वैत बाबू दिख रहे हैं वे अब छ: साल और बड़े हो चुके। यह तस्वीर उन्हीं की मम्मी और लेखिका अंकिता जैन जी द्वारा खींची गई थी। इस तस्वीर को देखकर

2019 में दिवाली के दिन ली गई यह तस्वीर आज भी हमारी सबसे प्रिय तस्वीर है जिसे दिवाली पर हम हर साल साझा करते हैं। तस्वीर में जो छोटे से अद्वैत बाबू दिख रहे हैं वे अब छ: साल और बड़े हो चुके। यह तस्वीर उन्हीं की मम्मी और लेखिका अंकिता जैन जी द्वारा खींची गई थी। इस तस्वीर को देखकर
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हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं और घर उनसे मुक्ति सचाई यूँ भी हो सकती है कि यात्रा एक अवसर हो और घर एक संभावना ट्रेनें बदलना विचार

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कितना बुरा होगा जब नहीं होगा बच्चों के भीतर बच्चा स्त्रियों के भीतर स्त्री और पुरुषों के भीतर पुरुष। कितना बुरा होगा जब एक आदमी के भीतर पूरी दुनिया होगी पर दुनिया के भीतर वह आदमी नहीं होगा। चंद्रबिंद