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Shakeel Azmi

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Poet☆Lyricist☆songs:ekTukdaDhoop,intezari,saansonKo,marizeIshq,tuBanjaGaliBanarasKi,teriFariyad,jeeneBhiDe,sunleZara,tuZaroori,ayeKhuda,manjha,12Books,23Awards.

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calendar_today07-05-2019 18:41:18

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क़यामत के बिना वीरान होती जा रही है ये दुनिया जंग का मैदान होती जा रही है - शकील आज़मी

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जंग नुक़सान का सौदा है ये सब जानते हैं फिर भी जो लड़ते हैं ये बात कहां मानते हैं - शकील आज़मी

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जो लड़खड़ाएं तो ख़ुद को सहारा करते हैं हम अपनी मौज को अपना किनारा करते हैं ग़ज़ल के पीछे भटकते हैं सोई रातों में ये है ख़सारा तो फिर हम ख़सारा करते हैं वो जिसका नाम है शोहरत कमाल लड़की है हम उसके वास्ते क्या-क्या गवारा करते हैं - शकील आज़मी २१ जून, मेरठ

जो लड़खड़ाएं तो ख़ुद को सहारा करते हैं 
हम अपनी मौज को अपना किनारा करते हैं 

ग़ज़ल के पीछे भटकते हैं सोई रातों में 
ये है ख़सारा तो फिर हम ख़सारा करते हैं 

वो जिसका नाम है शोहरत कमाल लड़की है 
हम उसके वास्ते क्या-क्या गवारा करते हैं 

- शकील आज़मी 

२१ जून, मेरठ
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बिता दी उम्र मैंने उसकी इक आवाज़ सुनने में उसे जब बोलना आया तो बहरा हो गया था मैं - शकील आज़मी

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जो तिरे ऐब बताता है उसे मत खोना अब कहां मिलते हैं आईना दिखाने वाले - शकील आज़मी

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अपनी ही शक्ल में रहने पे बज़िद है लोहा देखिए क्या हो हथौड़ा भी नहीं रुकता है - शकील आज़मी

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कहानी जिसकी थी उसके ही जैसा हो गया था मैं तमाशा करते-करते खुद तमाशा हो गया था मैं - शकील आज़मी

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मेरे पानी से नमक छान लिया दुनिया ने मैं किनारों के लिए झाग कहां से लाऊं - शकील आज़मी

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बुझा तो ख़ुदमें इक चिंगारी भी बाक़ी नहीं रक्खी उसे तारा बनाने में अंधेरा हो गया था मैं - शकील आज़मी

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अब तो मर जाता है रिश्ता ही बुरे वक़्तों पर पहले मर जाते थे रिश्तों को निभाने वाले - शकील आज़मी

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सो ख़ुद को ढूंढ कर इक रोज़ गोली मार दी मैं ने जिसे चाहा उसी की जां का ख़तरा हो गया था मैं - शकील आज़मी

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ख़ुदको दुख देना उजड़ना मिरी मजबूरी है ज़िन्दगी तुझसे बिछड़ना मिरी मजबूरी है मेरा साया ही मिरे पौधों का दुश्मन ठहरा अपनी मिट्टी से उखड़ना मिरी मजबूरी है मैं बना ही था किसी रोज़ बिगड़ने के लिए सो किसी रोज़ बिगड़ना मिरी मजबूरी है - शकील आज़मी

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मिरी ही ज़ात में हंगामा-ए-सहर भी था शब-ए-ख़मोश का मैं आख़िरी पहर भी था मैं ऐसे शख़्स की परछाइयों में ज़िन्दा हूं जो थक चुका भी था आमादा-ए-सफ़र भी था वो दिन में सोता था रातों को जगाता था शकील मिरे पड़ोस में इक शख़्स बे हुनर भी था - शकील आज़मी

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न मेरा नाम था ना दाम बाज़ार-ए-मोहब्बत में बस उसने भाव पूछा और महंगा हो गया था मैं - शकील आज़मी

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मैं उसके छूने से अच्छा हुआ बताता किसे सभी ने पूछा था मुझसे दवा के बारे में - शकील आज़मी

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गुनाह था मुझे जिसके बदन का साया भी वही मिरा कई रातों से हमसफ़र भी था - शकील आज़मी

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शायरी रूह में तहलील1 नहीं हो पाती हमसे जज़्बात की तशकील2 नहीं हो पाती रात ही के किसी हिस्से में बिखर जाता हूं सुब्ह तक ख़्वाब की तकमील नहीं हो पाती - शकील आज़मी 1 घुलना, 2 रूपांकन

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वर्ना मर जाएगा बच्चा ही मेरे अन्दर का तितलियां रोज़ पकड़ना मिरी मजबूरी है - शकील आज़मी

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कुछ इस तरह से मिलें हम कि बात रह जाए बिछड़ भी जाएं तो हाथों में हाथ रह जाए - शकील आज़मी कल घर में एक बा - रौनक़ शाम

कुछ इस तरह से मिलें हम कि बात रह जाए 
बिछड़ भी जाएं तो हाथों में हाथ रह जाए 
- शकील आज़मी 

           कल घर में एक बा - रौनक़ शाम
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पड़ा जो वक़्त तो पैसे की तर्ह काम आए हमारे पास भी कुछ लोग थे कमाए हुए - शकील आज़मी

पड़ा जो वक़्त तो पैसे की तर्ह काम आए 
हमारे पास भी कुछ लोग थे कमाए हुए 
- शकील आज़मी