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Prabhat Ranjan

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writer of 'paltoo bohemian(पालतू बोहेमियन)', a widely appreciated memoir of manohar shyam joshi, moderator of jankipul.com and translator

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linkhttp://jankipul.com calendar_today19-11-2009 07:44:00

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ख़त के छोटे से तराशे में नहीं आएंगे ग़म ज़ियादा हैं लिफ़ाफ़े में नहीं आएंगे हम ना मजनूँ हैं ,ना फ़रहाद के कुछ लगते हैं हम किसी दश्त तमाशे में नहीं आएंगे मुख़्तसर वक़्त में यह बात नहीं हो सकती दर्द इतने हैं खुलासे में नहीं आएंगे उसकी कुछ ख़ैर ख़बर

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'लेखक दो तरह के होते आए हैं-जमे हुए या उखड़े हुए। मैं दूसरी श्रेणी में आता हूँ। जमा हुआ लेखक अपना लिखा पढ़कर स्वयं मुग्ध होता है और आश्वस्त रहता है कि पाठक पढ़कर मुग्ध होय के मुक्त कंठ से दाद देवे करेगा और राइवल लेखक ईर्ष्यावश इग्नोर करेगा या कटु आलोचना।' -मनोहर श्याम जोशी

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हमें पता है कि परचा बुरा नहीं आया मगर तुम्हारा पढ़ाया हुआ नहीं आया किसी के हाल पे हँसने गया था महफ़िल में मगर मैं लौट के हँसता हुआ नहीं आया मैं शर्मसार कि फिर देर हो गई मुझ को वो सोचता है कि अच्छा हुआ नहीं आया हमारी चीख़ ने इक भीड़ तो इकट्ठा की मगर हमारा पुकारा हुआ नहीं आया

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जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता बुलंदी

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तू है कौन पहले ये बता? तूने संघी से गांधीवादी बने आदरणीय राहुल देव जी की पहचान वैसे ही चुरा ली है जैसे उदय प्रकाश की कहानी मोहनदास में!

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मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूँ मैं अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझ को वहाँ पे ढूंढ रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं मैं आइनों से तो मायूस लौट आया था मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं वो ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद है मगर मैं भी कहीं कहीं हूँ

Sanjeev Paliwal/संजीव पालीवाल (@sanjeevpaliwal) 's Twitter Profile Photo

नदी के द्वीप / अज्ञेय हम नदी के द्वीप हैं। हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाए। वह हमें आकार देती है। हमारे कोण, गलियाँ, अंतरीप, उभार, सैकत-कूल सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं। माँ है वह! है, इसी से हम बने हैं। किंतु हम हैं द्वीप। हम धारा नहीं हैं। स्थिर समर्पण है हमारा।

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“सफल एवं बहुत सफल लोगों में सबसे बड़ा फर्क यह है कि बहुत सफल लोग लगभग हर चीज को ‘नहीं’ कहते हैं।” —वॉरेन बफे

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यह किस्सा सब भोजपुरी भाई-बहनों के लिए- यह किस्सा तब का है जब मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। तब वे हिन्दी के कट्टर समर्थक थे और उन्हीं दिनों अखबार में खबर आई थी कि दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज के प्रिंसिपल को उन्होने अपने बेटे के नामांकन के

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गाहे गाहे अब भी चले जाते हैं हम उस कूचे में ज़ेहन बुज़ुर्गी ओढ़ चुका दिल की नादानी बाक़ी है -कुमार पाशी

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यह कहानी है प्रसिद्ध अमेरिकी कवि-लेखक चार्ल्स बुकोवस्की की- “चार्ल्स बुकोवस्की लेखक बनना चाहता था। लेकिन दशकों तक उसका काम हर पत्रिका, अखबार, जर्नल, एजेंट और प्रकाशकों द्वारा ठुकराया जाता रहा। वे उसके काम को 'बदतर', 'अश्लील', 'बकवास', 'ख़राब' इत्यादि कहते रहे। हर न' के साथ वह

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कई बार बहुत बेचैन हो जाता हूँ और उन घटनाओं दुघर्टनाओं से मुक्ति चाहता हूँ जो मेरे जीवन में घटीं। सोचता हूँ कि अगर वे न घटी होतीं तो मेरा जीवन कैसा होता? घटनाहीन जीवन की कल्पना रोमांचित कर जाती है कभी कभी... चाहता हूँ कि फिर से उस जीवन को जिऊँ जो मैंने जिया। कहीं कुछ नहीं •

कई बार बहुत बेचैन हो जाता हूँ और उन घटनाओं दुघर्टनाओं से मुक्ति चाहता हूँ जो मेरे जीवन में घटीं। सोचता हूँ कि अगर वे न घटी होतीं तो मेरा जीवन कैसा होता? घटनाहीन जीवन की कल्पना रोमांचित कर जाती है कभी कभी... चाहता हूँ कि फिर से उस जीवन को जिऊँ जो मैंने जिया।

कहीं कुछ नहीं •
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हम ने कब चाहा कि वो शख़्स हमारा हो जाए इतना दिख जाए कि आँखों का गुज़ारा हो जाए हम जिसे पास बिठा लें वो बिछड़ जाता है तुम जिसे हाथ लगा दो वो तुम्हारा हो जाए तुम को लगता है कि तुम जीत गए हो मुझ से है यही बात तो फिर खेल दुबारा हो जाए है मोहब्बत भी अजब तर्ज़-ए-तिजारत कि यहाँ हर