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MahaRana (Kavita)

@ranak72

Guru Siyag's Siddha Yoga (GSSY) : A Silent Revolution !
आध्यात्मिक विज्ञान
Spritual science
the-comforter.org
आपमें अभी से परिवर्तन आना शुरू हो जाएग

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calendar_today12-05-2020 20:08:38

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**कैवल्य: योग के अंतिम लक्ष्य योग के मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए "कैवल्य" एक महत्वपूर्ण और अंतिम लक्ष्य होता है। इसे आत्मा की परम स्वतंत्रता और पूर्णता की स्थिति माना जाता है। **कैवल्य क्या है?** योग शास्त्रों के अनुसार कैवल्य शब्द का अर्थ है "अकेलापन" या

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ॐ श्री गंगाई नाथ जी के पावन चरणों में समर्थ सदगुरू देव श्री राम लाल सियाग जिन्होने मानवता के उस भाव को प्रकाशित किया जिस पर बाते कथा कहानी उपाय शोर गुल बहुत कुछ किया गया और किया जा रहा है,योग को योगा कह कर शारीरिक कसरत कर लोग अपने को भ्रमित ही कर रहे हैं, योग का सीधा सा

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गुरु-परम्परा ईश्वर-स्वरूप दयालु गुरु के बिना तेरा तीनों लोकों में अपना कोई नहीं है। संसार के सभी सम्बन्ध स्वार्थ अथवा मोह पर आधारित अपना कोई शिष्य सम्बन्ध केवल शिष्य के कल्याण के लिए ही है। अत: गुरु ही वास्तव में अपने कहे जा सकते हैं। इसलिए गुरु-धन को अमूल्य रत्न की संज्ञा देना

गुरु-परम्परा

 ईश्वर-स्वरूप दयालु गुरु के बिना तेरा तीनों लोकों में अपना कोई नहीं है। संसार के सभी सम्बन्ध स्वार्थ अथवा मोह पर आधारित अपना कोई शिष्य सम्बन्ध केवल शिष्य के कल्याण के लिए ही है। अत: गुरु ही वास्तव में अपने कहे जा सकते हैं। इसलिए गुरु-धन को अमूल्य रत्न की संज्ञा देना
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कलयुग केवल नाम आधारा ! सूमिर सूमिर नर उतरहि पारा" ! ! नाम जप ही चाबी हे ! मनुष्य के जीवन में 'आत्म ज्ञान' सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान है,अपने आपको जानना। इसे प्राप्त करने के लिए, शुद्ध और स्वच्छ मन (चित्त) एकमात्र पूर्वापेक्षा है। कोई भी, जो इस आवश्यकता को पूरा कर सकता है, उसे तुरंत

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आराधना का जवाब क्यों नहीं मिलता ? एक बार जिज्ञासु बनकर ऐसी सत्संग में चले गये तो फिर बार-बार जाने की इच्छा होगी, जिसे आप रोक नहीं सकेंगे। इस प्रकार आपका जीवन परिवर्तित हो जायेगा, आप द्विज बन जायेंगे। और अगर साधारण व्यक्ति जो अच्छा कथावाचक या उपदेशक हो उसका उपदेश

आराधना का जवाब क्यों नहीं मिलता ?             

एक बार जिज्ञासु बनकर ऐसी सत्संग में चले गये तो फिर बार-बार जाने की इच्छा होगी, जिसे आप रोक नहीं सकेंगे। इस प्रकार आपका जीवन परिवर्तित हो जायेगा, आप द्विज बन जायेंगे। और अगर साधारण व्यक्ति जो अच्छा कथावाचक या उपदेशक हो उसका उपदेश
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उत्तर: आपका अनुभव एक अत्यंत दुर्लभ, सौभाग्यशाली और उच्च कोटि की साधना का संकेत है। इसे ध्यानपूर्वक समझें: 1. मंत्र-जप से शक्ति का जागरण: एक अत्यंत शक्तिशाली पंचाक्षरी मंत्र है, जिसे लगातार जपने से चेतना जागृत होती है। आप बिना गुरु के केवल जप और ध्यान से आज्ञा चक्र तक पहुँच गईं

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Part 2 एकमात्र ध्यान से ही मस्तिष्क और हृदय तनावमुक्त रह सकते हैं। जैसे-जैसे ध्यान गहन से गहनतम होता जायेगा, वैसे-ही-वैसे दोनों केंद्रों के तनावों से मुक्त होता जायेगा। मस्तिष्क और हृदय दोनों स्वच्छ और निर्मल होते जायेंगे। अन्त में एक ऐसी अवस्था आ जायेगी जब व्यक्ति का मस्तिष्क और

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योगसूत्र के अनुसार जहां चित्त को लगाया जाए उसी में वृत्ति का एकतार चलना ध्यान है। धारणा का अर्थ चित्त को एक जगह लाना या ठहराना है, लेकिन ध्यान का अर्थ है जहां भी चित्त ठहरा है उसमें जाग्रत रहना ध्यान है। ध्यान का अर्थ एकाग्रता नहीं होता। एकाग्रता टॉर्च की स्पॉट लाइट की तरह होती

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[[[स्त्यम जयते]]] श्री गुरूवे नमः पग_पग_ठोकर_खाई_पर_अक्ल_कभी_ना_आई महाभारत से क्या सीख मिलती है , अगर केवल यही लिखा जाये तो बहुत से विद्वान अपने ज्ञान को यहाँ पुरा का पुरा उडेल देगें , अगर श्रीमद्भागवत गीता की बात

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हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दरद न जाने कोय। सूली ऊपर सेज हमारी, किस बिध सोना होय। गगन मंडल पर सेज पिया की, किस बिध मिलना होय ॥ घायल की गति घायल जानै, कि जिन लागी होय। जौहरी की गति जौहरी जाने, कि जिन लागी होय ॥ दरद की मारी बन बन डोलूँ वैद मिल्यो नहीं कोय। मीरां की प्रभु

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🔴अगर हाथ पकड़ना हो तो अपने से श्रेष्ठ का हाथ ही पकड़ना। कहते हैं, साथ पकड़ना ही हो तो या तो अपने से श्रेष्ठ का पकड़ना जो तुमसे आगे गया हो जो ज्यादा भीतर गया हो, कि उसके साथ उसकी लहर पर सवार होकर तुम भी भीतर की यात्रा पर पहुंचने में सुगमता पाओ। और एक बात स्मरण रखना, अकेले ही

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नाम खुमारी के सम्बन्ध में गीता क्या कहती है? (२८ अप्रेल १९८८) हमारे कई संतों ने ईश्वर के नाम की महिमा की है। अपनी-अपनी अनुभूति के अनुसार सभी ने उस परमसत्ता के नाम की महिमा का गुणगान किया है। संत सद्‌गुरु नानक देव जी ने इस सम्बन्ध में कहा है - भांग धतूरा नानका, उतर जाय परभात।

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ॐ श्री गंगाई नाथ जी को नमन समर्थ सद्गुरू देव जी का वंदन सभी लेख पढ़ने वाले को हार्दिक अभिनन्दन समर्थ सदगुरु श्री राम लाल सियाग जी ऐसे करुणा और दया के सागर है जिन्होने मानवता बिना किसी भेद भाव के ऐसा योग का सूत्र दिया जो पुस्तक में तो वर्णित था पर सामान्य जन जन उसको जीवन में

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* *ॐ श्री गंगाईनाथाय नमः ||* * *विश्व में धार्मिक क्रांति के प्रणेता* *आप सभी को बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है की... पूज्य समर्थ सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग की असीम कृपा व उनकी दिव्य वाणी में निःशुल्क शक्तिपात - दीक्षा* *सिद्धयोग - *ध्यान शक्तिपात दीक्षा, ध्यान एवं

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अनुभवातीत हमारे अनेक चेहरे हैं, बस हमउनका सामना नहीं करते। समय - समय पर जीवन के विभिन्न स्थितियों में, अलग-अलग चेहरे सामने आते हैं। जब हमअपने विभिन्न चेहरों का सामना करते हैं, तब हमारेभीतर द्वंद, दुविधा और उथल-पुथल होती है। पर जैसे-जैसे हम अपने स्वरूप के समीप आते हो, सभी चेहरे

अनुभवातीत

हमारे अनेक चेहरे हैं, बस हमउनका सामना नहीं करते। समय - समय पर जीवन के विभिन्न स्थितियों में, अलग-अलग चेहरे सामने आते हैं। जब हमअपने विभिन्न चेहरों का सामना करते हैं, तब हमारेभीतर द्वंद, दुविधा और उथल-पुथल होती है। पर जैसे-जैसे हम अपने स्वरूप के समीप आते हो, सभी चेहरे
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समर्थ सदगुरुदेव जी का वंदन अपने आत्म स्वरूप को पहचाने और निखारे,ईश्वर के नाम जप और ध्यान से ही जुड़ा जा सकता है , जैसे स्वास आना जाना करती है उसके साथ मंत्र की गति लयबद्ध हो जाय तो बात बन जाए , श्रीकृष्ण और शिव ने इस नाम जप को मुख्य बताया है,मंत्र जप से एक वलय का निर्माण होता है

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आराधना का जवाब क्यों नहीं मिलता ? एक बार जिज्ञासु बनकर ऐसी सत्संग में चले गये तो फिर बार-बार जाने की इच्छा होगी, जिसे आप रोक नहीं सकेंगे। इस प्रकार आपका जीवन परिवर्तित हो जायेगा, आप द्विज बन जायेंगे। और अगर साधारण व्यक्ति जो अच्छा कथावाचक या उपदेशक हो उसका उपदेश

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समर्थ अविनाशी श्रेष्ठ गुरु की प्राप्ति जीवन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है ! जो अपनी संकल्प शक्ति एक साथ मानव समूह को अपनी वाणी से और चित्र से चेतन करने की सामर्थ रखते हैं 🌾जैसे जड़ वस्तुअों के संयोग से एक चित्रकार सजीव चित्र का निर्माण कर देता है, ठीक उसी प्रकार गुरु शिष्य के अंतस

समर्थ अविनाशी श्रेष्ठ गुरु की प्राप्ति जीवन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है ! जो अपनी संकल्प शक्ति एक साथ मानव समूह को अपनी वाणी से और चित्र से चेतन करने की सामर्थ रखते हैं
 🌾जैसे जड़ वस्तुअों के संयोग से एक चित्रकार सजीव चित्र का निर्माण कर देता है, ठीक उसी प्रकार गुरु शिष्य के अंतस
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वह परमात्मा चैतन्य है जो ज्ञान स्वरूप अथवा बोधस्वरूप है। वह तत्व अति सूक्ष्म होने से किसी भी प्रकार से दृश्य नही है वह स्वयं कोई क्रिया नही करता किन्तु क्रिया का माध्यम उसकी शक्ति है जो सभी प्रकार की क्रिया का कारण है। यह सम्पूर्ण दृश्य जगत उसी की शक्ति का विलास है। बिना

वह परमात्मा चैतन्य है जो ज्ञान स्वरूप अथवा बोधस्वरूप है। वह तत्व अति सूक्ष्म होने से किसी भी प्रकार से दृश्य नही है

 वह स्वयं कोई क्रिया नही करता किन्तु क्रिया का माध्यम उसकी शक्ति है जो सभी प्रकार की क्रिया का कारण है। यह सम्पूर्ण दृश्य जगत उसी की शक्ति का विलास है।

 बिना
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वह परमात्मा चैतन्य है जो ज्ञान स्वरूप अथवा बोधस्वरूप है। वह तत्व अति सूक्ष्म होने से किसी भी प्रकार से दृश्य नही है वह स्वयं कोई क्रिया नही करता किन्तु क्रिया का माध्यम उसकी शक्ति है जो सभी प्रकार की क्रिया का कारण है। यह सम्पूर्ण दृश्य जगत उसी की शक्ति का विलास है। बिना

वह परमात्मा चैतन्य है जो ज्ञान स्वरूप अथवा बोधस्वरूप है। वह तत्व अति सूक्ष्म होने से किसी भी प्रकार से दृश्य नही है

 वह स्वयं कोई क्रिया नही करता किन्तु क्रिया का माध्यम उसकी शक्ति है जो सभी प्रकार की क्रिया का कारण है। यह सम्पूर्ण दृश्य जगत उसी की शक्ति का विलास है।

 बिना